दहेज

मेरे माथे को सिंदूर देके मेरे विचारों को समेट दिया मेरे गले को हार से सजाया पर मेरी आवाज़ को बांध दिया मेरे हाथों मे…

आओ तन मन रंग लें

चली बसंती हवाएँ , अल्हड़ फागुन संग, गुनगुनी धूप होने लगी अब गर्म, टेसू ,पलाश फूले, आम्र मंज्जरीयों से बाग हुए सजीले, तितली भौंरे कर…

खोज…

खोजते है बचपन अपना , ढूंढते है नादानी अपनी , कूड़े के ढ़ेर को समझते है कहानी अपनी ! देखकर मुझको वैसे तो दया सब…

कितने ही दिन गुज़रे हैं पर, ना गुजरी वो शाम अभी तक; तुम तो चले गए पर मैं हूँ, खुद में ही गुमनाम अभी तक!…

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