कहते तो खुद को आशिक-ए-पर्वरदिगार थे,
आसमाँ तले जो बैठे हैं चाँदनी के मुन्तजिर, आपकी जुल्फ़ों में चाँद के आसार ढ़ूढ़ते हैं!! कल तलक जो जीते थे फकीराना सी जिन्दगी, हर…
आसमाँ तले जो बैठे हैं चाँदनी के मुन्तजिर, आपकी जुल्फ़ों में चाँद के आसार ढ़ूढ़ते हैं!! कल तलक जो जीते थे फकीराना सी जिन्दगी, हर…
जिन्दगी भर भटका किये राह-ए-उम्मीद में, कभी पहुँच ही ना पाये दयार-ए-हबीब में, शाम ढ़ल गयी और हम यूँ ही बैठे रह गये,…
आ कि तुझ बिन बज्म-ए-यारों में भी घबराता हूँ मैं, अपनों की महफिल में खड़ा गैर हो जाता हूँ मैं, बिन तेरे सारा जहाँ …
मैं उनसे चन्द पल की ही तो मोहलत माँगता था, ना जानें क्यों उन्होंनें जिन्दगी ही नाम कर दी हैं, मैं सोया हूँ नहीं दिन…
ना जाने किस भँवर में हूँ इक ठिकाना ढ़ूढ़ता हूँ, जिन्दगी जी लूँ ज़रा सा बस फ़साना ढ़ूढ़ता हूँ, प्यार की कश्ती में लगता डूबता…
मन की बात खुदा ही जानें आँखें तो दिल की सुनती हैं, जिनसे पल भर की दूरी रास नहीं उनसे ही निगाहें लड़ती हैं, दिल…
ये प्यार हटा दो तुम दिल से कहीं धोखा ये दे जाये ना, कसमों वादों और बातों में कहीं रात गुज़र ये जाये ना, सच…
वतन परश्ती के लिये कोई हिन्दू कोई मुसलमाँ नहीं होता , जिधर भी देखो हर वक्त मौजूद भगवान नहीं होता, ज़रा नफरत की आग तो…
ना तो इन्कार करते हैं ना ही इकरार करते हैं, मेरी हर अताओं को सरज़द स्वीकार करते हैं, हया की तीरगी को वो नज़र से…
कहो कोई तो कि आज फिर से शाम हो जायें, मजबूर हूँ बन्द आँखों से कुछ भी दिखायी नहीं देता, मैं सन्नाटे में क्यों कर…
काली घटायें हैं बादल में , धीमी हवायें हैं सागर में , भीनी सुगन्ध है माटी की , करती आकर्षित घाटी को, तुम कहाँ छुपे…
आखिर माँ है वो मेरी मुझे पहचान जातीं हैं……. मैं बोलूँ या ना बोलूँ कुछ वो सब कुछ जान जातीं हैं, मेरी खामोशी से ही…
भरे महफिल में मेरे इश्क की वो इस कदर ताबीर करता हैं, कि अब तो हर गली में सब मुझे ही पीर कहता हैं,
हर बात ही हो लफ्जों से बयाँ ये जरूरी तो नहीं ‘हुज़ूर’, दिल ए नादाँ की कुछ सदायें तुम भी तो सुनना सीखो, हर नज्म़…
यूँ गयें हो दूर हम से जैसे कुछ था ही नहीं, लगता है पुरानी सोहबतों को भी तुम भूल गये हो, इतना भी आसान…
मेरी तन्हाइयों का जिम्मेदार किसे मानूँ मैं ‘हूज़ूर’ तेरे जाने के बाद इन हवाओं नें भी तो रुख बदला था,
गलतफ़हमीं में जी रहे हो ‘हुज़ूर’ दर्द क्या होता हैं तुम्हें क्या मालूम, ज़रा पूछो उनसे जिनके अश्कों को पलकों का सहारा नहीं मिलता,
मेरे खतों के पैगाम का आलम कुछ यूँ हैं ‘ज़नाब’, कि सफीरों की लाशें बिछ गयीं हैं राह ए इंतिजार में,
चलो उसी कू-ए-यार में चलतें हैं साकी मय-कदा तो खाली हो गया लगता, जहाँ शब-ए-सियह में भी उनके हुश्न-ए-जाम के प्याले मिला करते थे ,
उनके अश्कों में भी इक रंग नजर आता है मुझे, तन्हा रातों में भी कोई संग नजर आता है मुझे, उल्फ़त में उनकी मैं…
आज नहीं तो कल चुका दूँगा , कुछ प्यार मुस्तआर ही दे दो, चोरी छुपे नहीं सरेआम माँगता हूँ , आखरी वक्त का सलाम ही…
हर बाब बन्द और दरीचे खुलीं थीं घर की इशारा इस ओर था, कोई चोरी छुपे ही सहीं झरोखों से मगर इन्तजार में राहें निहार…
ये तसादुम ये रंजिशे अब देखी नहीं जाती कह दो उन से भी कि दीदार ए यार ना करे , तस्वीरें देख देख कर हम…
अहवाल ए मोहब्बत की समझ हम में भी हैं तनिक सी , इश्क कर बेवफाई को बदनाम करना कुछ नया तो नहीं , यूँ मौत…
रुसवा हो गयीं हो तुम या फिर समझ मैं नहीं पाया , यूँ नखरें दिखाना तिरी अदाओं में तो शामिल ना था, तड़प गर मैं…
सुना है रहजन बहुत हैं तिरी राह पर मयकशी के जाम आँखों से लूटते हैं, चलों लुटने के बहाने ही सहीं ‘ज़नाब’ तिरी जानिब फिर…
तन्हा राहों पर गर मैं भी अकेला चला होता तो अब तलक मंजिल मिल ही गयी होती, मगर इन्तजार भी कोई चीज़ होती है ‘हुज़ूर’…
क्या मेरी आँखों से ही तिरी कोई रंजिश थी उस दिन, या तिरे दीदार की हर खबर झूठी थी उस दिन, हर गलीं हर चौक…
हुज़ूर देखा था मैंनें भी उसे सारी तस्वीरें सरेआम नीलाम करते हुये, लगता हैं वो अन्जान हैं इस बात से की यादों के खरीददार नहीं…
सुना है नाम बहुत है उसका बदनाम होने के लिये, बहुत बड़ा राज होता है जना़ब कामयाबी यूँ ही नहीं मिलती,
किया है कभी गौर की गये मयखाने में और ना चढी शराब तो क्या होगा , गर पिला जायें कोई हुश्न के दो चार जाम…
वक्त मिटायेगा फासले क्या पता कब वो मेरे हो जाये, मैं ही क्यो मानूँ हार जब भरी महफिल में भी सब अकेले हो जाये
आ चलें फ़लक तले आसमाँ पुकार रहा होगा, नूरीं की खिदमत में आफ्ता़ब भी तो आ रहा होगा, क्या पता हो जायें तुझे दीदार तिरी…
कुछ तो मजबूरियाँ तेरी भी रहीं होंगी कुछ तो मजबूरियाँ मेरी भी रहीं होंगी , सब की मजबूरियों में मजबूर थे हम तेरी नजदीकियों से…
कुछ यूँ कटेगी बेरहम सी जिन्दगी हमनें सोचा ना था, वक्त के हाथों ही होगी ख्वाबों की खुदकुशी हमनें सोचा ना था, तन्हा रातों में…
वक्त मिटायेगा फासले क्या पता कब वो मेरे हो जाये, मैं ही क्यो मानूँ हार जब भरी महफिल में भी सब अकेले हो जाये,
नवल सुबह की नव शुभ किरणें करें सभी का वन्दन , क्रन्दन रुदन से रहे परे , करें सभी का अभिनन्दन, हो देवों की विजय…
सामने खड़ी थी वो चंचल हसीना , दीवाना था जिसका मैं पागल कमीना, सब कह रहे थे तुझे देखती है , मुझे भी लगा वो…
अहद ए दिल नें ही तो हमें बर्बाद कर दिया,रकीबों की रकीबत का पर्दा-फाश कर दिया, उनके हर्फ़ों की चर्चा होने लगी हर तरफ ,…
दिलकश ख्यालों से दिलकशी का सबक कुछ यूँ सिखा गये हो , हुज़ूर ! अब तो दिलकशी लफ्ज से भी डर लगने लगा है
पेश ए खिदमत् में तो है ही ये दिल आपके हुज़ूर, मारना है तो मार ही दो ना , यूँ तड़पाना गैरों को किसी बड़प्पन…
ज़नाब बदल सी गयी है जिन्दगी कुछ यूँ वक्त की दरकार में, यादों की बहार में, मिलन की दरार में ,और तेरे इन्तजार में,
रात के ख्वाबों में भी उसका सहारा चाहिये, दिन के हर लम्हात में उसका इशारा चाहिये, हुजूर वो भी इन्सान है शैतान नहीं ,उसकी पलकों…
समझदार हूँ मैं लफ्जों का असर जानता हूँ ,नश्तर सा चुभते हैं दिल में इनका दर्द जानता हूँ, हर बात बयाँ करने के लिये लफ्ज…
कलमकार के कलम की स्याही जिस दिन यारों खत्म हो गई, या तो कोई जुल्म हुआ है उस दिन या वो अात्मा परम् हो गई,
जग सारा सोता है जब तब मैं जागता रहता हूँ, तेरी यादों में अश्कों से दर्द बांटता रहता हूँ, तेरी रूह की साये से मैं…
आखिर तुझे भी कोई बुला रहा होगा ,तुझे याद कर कर के कोई मुस्कुरा रहा होगा | यूँ ही नहीं जुबाँ लड़खड़ा जाती है हर…
ये तो फिरास़त है मेरी जो विरासत ए इश्क कर दी है तेरे नाम, वरना जाबिरों को काबिल ए वफा समझता ही कौन है ,
गम के फसाने को तेरी खुशियों ने लूटा , तेरी हर दीद की उम्मीद ने अखियों को लूटा , उजाले की हर किरन को तूनें…
कभी कभी दिख भी जाया करो हुज़ूर,डर रहता है कहीं देखने की चाहत ही ना खत्म हो जायें |
Please confirm you want to block this member.
You will no longer be able to:
Please note: This action will also remove this member from your connections and send a report to the site admin. Please allow a few minutes for this process to complete.