कई साल बीत गए

कई साल बीत गए लेकिन लोगों की “छोटी सोच” अभी तक “बड़ी” नहीं हुई…. उन्हें धर्म दिख रहा हैं…. दर्द में तड़पती बेटियाँ नहीं….

अस्थिर

शीर्षक – अस्थिर जो सोचती हूँ अपने बारे में शायद किसी को समझा पाऊँ, मैं वो पानी की बूंद हूँ जो आँखों से आँसू बनकर…

जवाब…

जवाब… बस देती ही रही हूं जवाब… घर जाने से लेकर घर आने का जवाब… खाने से लेकर खाना बनाने का जवाब… बस देती ही…

मन

मन ******** मन की बंजर धरती पर फूल उगाए कौन मेरी सोई हिम्मत को,फिर से जगाए कौन बिखरा-बिखरा हैं मन मेरा टूटा टूटा जाए कल्पनाओ…

माँ, मैं तुम्हारी गलतियों को फिर नहीं दोहराउंगी…

माँ, मैं तुम्हारी गलतियों को फिर नहीं दोहराउंगी मैं अपने बेटों को औरत की इज़्ज़त करना सिखाऊंगी माँ,मैं तुम्हारी गलतियों को फ़िर नहीं दोहराउंगी औरत…

माँ

तू जो होती माँ मैं कभी ना रोती माँ मैं भी स्कूल में सबके साथ तेरे बनाए पराठे खाती..माँ सब बच्चो की तरह मैं भी…

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