ऐसा क्यों है

चारो दिशाओं में छाया इतना कुहा सा क्यों है यहाँ जर्रे जर्रे में बिखरा इतना धुआँ सा क्यों है शहर के चप्पे चप्पे पर तैनात…

क्या बताता

 कविता—क्या बताता तब आधी रात होने की कगार पर खड़ी थी लेकिन वो थी कि अपने सवाल पर अडी थी पूंछती थी कितनी मोहब्बत मुझसे…

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