नौकरी
गुलामी का अर्थ तो तब समझ आया, जब नौकरी की कुछ दिन एक प्राइवेट कंपनी में | कहते है उसे ‘नौकरी’ क्यों, यह तो जानता…
गुलामी का अर्थ तो तब समझ आया, जब नौकरी की कुछ दिन एक प्राइवेट कंपनी में | कहते है उसे ‘नौकरी’ क्यों, यह तो जानता…
कट जाते है दिन पैसो की झनकार सुनने के लिए | किन्तु रात आते-आते शुष्क पड़ जाता है वह जीवनरस; जिसे पीने के लिए मथते…
राजा-शासन गया दूर कही, गणतंत्र का यह देश है | चलता यहाँ सामंतवाद नहीं, प्रजातंत्र का यह देश है | दिया गया है प्रारब्ध देश…
उषा की रश्मि जब घोलती है चाय में चुस्ती, शुरू करते है दिन हम अपना | लेकिन शाम आते-आते आन पड़ती है फिर एक चाय…
रात का अन्धकार हूँ मैं मुझमे रौशनी भरने के आश में खुद जल कर मिट जाओगी, लेकिन यह अँधेरा कभी सूर्य का तेज नहीं देगा…
शब्द छलकते रहते है अनवरत आँखों से | और मैं उन्हें श्याही बना कर भरता रहता हूँ कोरे कागजो का खालीपन | -Bhargav Patel (अनवरत)
देख रहा हूँ रात में जगमगाती लाइट्स इन अंजान रास्तो पर, ज्यों जीवन धबकता है शहरो के दिल में। एक तसल्ली रहती है मन में…
मत डाला करो अब और तेल! यह बाती तो कब की जल कर मिट चुकी है, उस ज्योत के क्षणभर के उजाले के लिए |…
विक्स के इन्हेलर से ली हुई एक लंबी श्वास, ज्यों श्वासनली के बंध दरवाजे खोल देती है! तुम्हारे पुराने कपड़ो में से आती महक, दिल…
जिंदगी भी मीठी सुपारी के दाने-सी हो गई है | कुछ देर तक भरपूर मिठाश देती है | लेकिन हलक से उतरते ही गला दुखा…
जिसे कहते हो तुम कूड़े का ढेर; वह कोई कूड़ा नहीं! वह है तुम्हारी, अपनी चीजो का ‘आज’ | जिसे खरीदकर कल तुमने बसाया था…
सत्य! यों देखो तो सत्य यहाँ कुछ भी नहीं; सब छलावा है, मिथ्या है | जिस साये को मान साथी हम चलते है यहाँ, साथ…
झाँक रहा था मैं एक रोज ईश्वर की खिड़की के भीतर, किन्तु दंग रह गया निज प्रतिबिम्ब देख उस खिड़की में! अनायास ही कोई अनहद…
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