किसान का दर्द
ऊपर वाले ने कहर बरसाया है
एक बूंद धरा पर न आया है
धरती पर देखो आई दरार
चारों ओर मचा हाहाकार
कर्ज तले दबे हैं कितने किसान
क्या करें सोचते हैं सुबह शाम
घर अपना कैसे चलाएंगे
क्या खाएंगे क्या बच्चों को खिलाएंगे
बीता सावन भादो बीता
वर्षा की आस में दिल टूटा
करवट में रात बिताते हैं
क्या करें समझ नहीं पाते हैं
कई दिन से चूल्हा ना जला देखा
बच्चों को रोता बिलखता देखा
जब परिवार को भूखा सोता देखा
तो फंदे को गले में लगा बैठा
ऐ खुदा बस इतनी है इल्तजा
यह कहर कभी ना बरसाना
तेरी फुलवारी के फूल है हम
गुलशन न कभी उजड़ने देना
रीना कुमारी
तुपुदाना, राँची झारखंड
बहुत सुन्दर सृजन है आपका, बेहतरीन
Good