वही पुरानी तसल्ली
रोशनी दिन मे थी अंधेरी शाम लिखा था उसने,
वाकिब मैं था जैसे खुद को अंजान लिखा था उसने, नज़रे पलट ली निगाहों से अपने मुझको मिट्टी खुद को शान लिखा था उसने,
अरे बेवफा हूँ ऐसा सोच कर अपने हाथों पे किसी और का नाम लिखा था उसने।।
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Shayar Rajjneesh kann
बहुत सुंदर रचना