लगता है
लगता है हम बिखर चुके है,
अब कोई जोश नही है,रोष नही है,
हालातो का होश नही है
जब सुनते है वो प्यारी बातें
लगता है हम निखर चुके हैं,
लगता है हम बिखर चुके हैं।
याद पुरानी,बात पुरानी,
लगती है वो रात पुरानी,
सब कुछ पुराना है बस एक तुम्ही हो
जो हरबार नए ही लगते हो,
बस इतना ही कहने में कई बार हम जिगर चुके है,
लगता है हम बिखर चुके है।
प्यारा सा पल जो मुस्कुराता नजर आ रहा है,
ठीक वहा जहाँ तुम दिख जाते हो,
जहाँ शाम ढ़लती है,जहाँ दिन होता है,
हर पल,हर घड़ी हम ठहर चुके है,
लगता है हम बिखर चुके है।
~हार्दिक भट्ट
बिखरी हूई दुनिया में हम खुद को समेटते है
इसी नाकाम कोशिश में हम बिखर चुके है
हर पल बिखर कर संभालने का नाम ही ज़ीवन है… beautiful poetry Hardik…
True
Dwaah
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Sundar