मैं निरीह…

वह मुझे बताता है  निरीह  निर्जन  निरवता वासी हूँ

जब से मानव मानव न रहा मै बना हुआ वनवासी हूँ |

अवतरण हुआ जब कुष्ठमनन कुंठा व्याप्त हुआ जग में

तब विलग हो गया मै जग से अब एकांत का वासी हूँ ||

मैं शुन्यकाल के अनुभव का साक्षी क्या तुमको बतलाऊँ

मैं साधक सूने का मतिहीन मैं आत्मदर्श अभिलाषी हूँ |

तुम तीर्थभ्रमण करते हो व्यर्थ सब व्याप्त तुम्हारे अंतर में

आए जो हुए मुझ में विलिन  देखे मै मथुरा काशी हूँ ||

उपाध्याय…

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close