Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Tags: मुक्तक
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मुक्तक
विविध उलझनों में जीवन फंसा हुआ है किंचित ही दिखने में सुलझे हुए है लोग | स्वार्थ की पराकाष्ठा पर सांसे है चल रही अपने…
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Thanks ji
बढ़िया