बेकार की ये बेचैनी है …..!
अपनी बेचैनी और घबराहट की निरर्थकता पर उभरी हुई इस रचना ( गीत) को इसके podcast के साथ प्रस्तुत और share करने बहुत खुशी महसूस कर रहा हूँ ……
बेकार की ये बेचैनी है ….!
बेकार की ये बेचैनी है,
बेकार की सब घबराहट है,
तुम इससे विचलित मत होना,
ये अपने सोच की खामी है …..
रहता इनमें कुछ तथ्य नहीं,
मन की ही ये मनमानी है,
मन की ही ये शैतानी है……!
सोचो ये कौन ठिकाना है,
ये जग ही मुसाफिरखाना है,
यहाँ कुछ भी न हमको पाना है,
ना कुछ भी हमरा जाना है,
प्रकृति का खेल समझने को,
प्रकृति के नियम निभाना है…….!
इतना सारा सब पास जो है,
हमे और की काहे जरूरत है,
सब सुख है इसमे, पास जो है,
इतना ही ज्ञान जरूरी है..……….!
ख़ुद के ही शांत विचारों से,
प्रकृति के दोष समझना है,
काम क्रोध और मोह को तज,
हमे अंहकार से बचना है,
हर साँस प्रभु के नाम को स्मर,
सुख मे ये जीवन जगना है……..!
ये कामधाम जो सामने हैं,
ये प्रभु के भेजे काज ही हैं,
तन्मय हो, प्रेम से इनको कर,
(पूजा ही समझकर इनको कर)
प्रभु को ही अर्पण करना है…….!
प्रभुप्रेम मे ओतप्रोत हो यूं,
हमे प्रेम की वर्षा बनना है,
बेकार की इस बेचैनी को,
बेकार की हर घबराहट को,
सत्ज्ञान के सुख मे बदलना है…..!
मेरे मन कुछ तो सोच ज़रा,
बेचैनी और घबराहट क्यूँ …
बेचैनी और घबराहट से,
बिलकुल न हमे अब डरना है ………!
” विश्व नन्द “
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2 Comments
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Panna - March 29, 2016, 5:57 am
bahut khoob!
Vijayanand V Gaitonde - April 27, 2016, 5:17 am
Thank you so much…!