माटी मेरी प्रीत की
माटी मेरी प्रीत की पल पल पक्की होती जाये देख जीत मेरी प्रीत की, तेरा रंग क्यों फीका पड़ता जाये
माटी मेरी प्रीत की पल पल पक्की होती जाये देख जीत मेरी प्रीत की, तेरा रंग क्यों फीका पड़ता जाये
इक लौ जलाकर आया हूं अंधेरों में कहीं ख्वाहिश है के वो कल तक सूरज बन जाये
मैं हूं मनमौजी, बात कहूं मैं मन की सीधी सपाट कहता है, श्रीधर सनकी
अपने आंचल की छाओं में, छिपा लेती है हर दुःख से वोह एक दुआ दे दे तो काम सारे पूरे हों…
दिन कुछ लम्हों आड़ में गुजर गये हम आपके इश्क की आड़ में गुजर गये
मुठ्ठी में तकदीर है मेरी, मेरे वतन की कर ले कोई कितनी भी कोशिश मिटा नहीं सकता| क्या करेगा वो इन्सान आखिर जो देश का…
जिंदगी की सुंदर प्लास्टिक, कचरें में बदल जाती है अगर यूज न हो ढंग से, ऐसे ही जल जाती है कभी कभी जिंदगी से बढी…
आया खत मेरे इश्क का आज सिर्फ़ पता था मेरा, और कुछ नहीं|
मुन्तजिर हूं मैं मोहब्बत का मयखानों की मुझे तलाश नहीं इक दरिया है जिसे मैं ढ़ूढ़ता हूं पैमानों के जामों की मुझे प्यास नहीं
आज कोई भी ले जाये मुझे मै चला जाऊंगा इस दुनिया से लेना देना नही अब से कुछ
ज़हर इस तरह घुला जिंदगी में हर गूंठ में मुहं कढवा होता गया| बारिशों का तो आना जाना नहीं अरसे से सूखे से रिश्ता हमारा…
उनकी गली से जो गुजरे वो दीवाना हो जाता है भटक जाता है वो, मजनू हो जाता है हम भी गुजरे थे इक दफ़ा उनकी…
इक जमाना था, जब हम सब के हुआ करते थे आज हर कोई हमें अपना कहने से कतराता है|
थप थप की आवाज से अचानक मैं चोंक गया इक मासूम सा बच्चा खड़ा था, मेरी कार के बाहर अपने कुछ तिरंगो के साथ बेचना…
आस उनके आने की कभी खत्म नहीं होती जिद उनके आने की कभी खत्म नहीं होती
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