जीवन से हम क्या लिए
जद्दोजहद में जीवन के अनमोल लम्हेरुठते चले गए, और मैं बेखबर मोहरों के चाल में उलझी, पढ़ाव दर पढ़ाव उलझती चली गयी, जीत -हार से…
जद्दोजहद में जीवन के अनमोल लम्हेरुठते चले गए, और मैं बेखबर मोहरों के चाल में उलझी, पढ़ाव दर पढ़ाव उलझती चली गयी, जीत -हार से…
तकनीकी की लय में रिश्ते अब ढल रहें हैं , पीर की नीर हो अधीर जल धारा बन बह रही है, मन्तव्य क्या, गन्तव्य क्या,…
एक युवती जब माँ बनती है, ममता के धागों से बच्चे का भविष्य बुनती है, ज़ज्बात रंग -बिरंगे उसके, बच्चे के रंग में ढलते हैं,…
चलो उठो ये प्रण कर लें हम भारत को स्वच्छ बनाना है, धरती माँ के आँचल को हरियाले,फल-फूलों से सजाना है, प्रदूषण की जहरीली हवा…
सागर लहरें आग पानी जीवन की बस यही कहानी, ये जो है झीनी चादर जिंदगानी हमने- तुमने मिल बुनी है, रेशे-रेशे में घुली है तेरे-मेरे…
गणतंत्र दिवस की अरुणिम उषा में, राजपत की छवि निराली , हर रंगों की वेशभूषा में , भारत माता की छवि है प्यारी , उस…
नभ के अरुण कपोलों पर, नव आशा की मुस्कान लिए, आती उषाकाल नव जीवन की प्यास लिए, दिनकर की अरुणिम किरणों का आलिंगन कर, पुष्प…
पल महीने दिन यूँ गुजरे, कितने सुबह और साँझ के पहरे , कितनी रातें उन्नीदीं सी, चाँदनी रात की ध्वलित किरणें, कितने सपने बिखरे-बिखरे, सिमटी-सिमटी…
जीवन की पथरीली राहों पर, जब चलते-चलते थक जाऊँ, पग भटके और घबराऊँ मैं, तब करुणामयी माँ के आँचल सा स्पर्श देना, ऐ ईश मेरे…
अब ममता की छांँव और आत्मीयता को छोड़, व्यवसायिक मुकाम हासिल करने में जुटी जिंदगी । अब कुदरती हवा और चाँदनी रात के नज़ारों को…
न जाने क्या-क्या छुपा रही थी, गर्मी की सुबह, वो शाल ओढ़े जा रही थी, धूल से पाँव सने थे,चंचल नयन बोझिल हुए थे, भूख…
न जाने क्या-क्या छुपा रही थी, गर्मी की सुबह, वो शाल ओढ़े जा रही थी, धूल से पाँव सने थे,चंचल नयन बोझिल हुए थे, भूख…
ग्रीष्म ऋतु की खड़ी दोपहरी, सुबह से लेकर शाम की प्रहरी, सूरज की प्रचंड किरणें, धरती को तपा रहीं हैं, फसलों को पका रहीं हैं ं,…
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2017/04/06 कभी यूँ हीं हँस लिया करो, उदासी का दामन छोड़, खुशियों से मिल भी लिया करो, बहुत छोटी है जिन्दगी, जीने की तमन्ना बुन…
Dear All, This is in reply to Saavan team’s request to share the ways I used for promotions of my poem for Martyr’s Day Contest. …
वो माटी के लाल हमारे, जिनके फौलादी सीने थे, अडिग इरादो ने जिनके, आजादी के सपने बूने थे, हाहाकार करती मानवता, जूल्मो-सितम से आतंकित थी…
इस जहांँ के हाट में , हर चीज की बोली लगती है, जीव, निर्जीव क्या काल्पनिक, चीजें भी बिकती हैं, जो मिल न सके वही…
चली बसंती हवाएँ , अल्हड़ फागुन संग, गुनगुनी धूप होने लगी अब गर्म, टेसू ,पलाश फूले, आम्र मंज्जरीयों से बाग हुए सजीले, तितली भौंरे कर…
सूखी धरती सूना आसमान, सूने-सूने किसानों के अरमान, सूख गयी है डाली-डाली , खेतों में नहीं हरियाली, खग-विहग या हो माली, कर रहे घरों को…
ढ़ूँढ रही मैं बावरी, अपने हिस्से का, स्वर्णिम आकाश, टिम-टिम करते तारे, हाय! सुख-दुख के, बन गए पर्याय , तम घनेरा ऐसे , छाय जैसे…
बच्चे हम फूटपाथ के, दो रोटी के वास्ते, ईटे -पत्थर तलाशते, तन उघरा मन बिखरा है, बचपन अपना उजड़ा है, खेल-खिलौने हैं हमसे दूर,…
इस जीवन नाटक में, जगह अपनी बनानी पड़ती है, अस्तित्व अपनी मनवानी पड़ती है, कितना हीं गुणवान हो कोई, लोगों की नजर में हुनर अपनी,…
इस हृदय क्षितिज के, शून्य तल पर काली घटाएं, हैं जब-जब छातीं , हृदय पटल को विदीर्ण कर, वेदना ऐसे अकुलाती, जैसे काली घटाओं बीच,…
ममता की छाँव तले , समता का भाव लिए, इंसानियत का सभी में, संचार चाहती हूँ, माँ हूँ मैं,हाँ भारत माँ, एकता और सदभाव का,…
जिसे हम जीना कहते हैं, वो पल-पल मरना है जानो, निज हित में रत रहना, खाना, सोना , जगना ये, जीना नहीं है मानो ।…
शाखों के हरियाले पत्ते, जो हैं आज पीत हुए, शीत-ग्रीष्म सहते -सहते, बदरंग और अतीत हुए, उन पतझड़ के नीरस , पत्तो में भी था…
खुदी को मिटा कर, रम जाऊँ जहाँ में, खूशबू बन कर, समा जाऊँ फिज़ा में, कि सदा बन कर, बस जाऊँ आहो में, खुशी और…
परिहास बनी पल दो पल के, उन्मादित पलों को, प्रेम समझ परिहास बनी, कोमल एहसासों को अपने, पाषाण में तराश रही, क्षणभंगुर जगत में, अमरता…
जीवन में अपना क्या है, एहसासों का सपना जो है, खट्टी-मीठी यादों की जाल, और कुछ सुनहरे भविष्य की आस, मन में संजोए जीने की…
विचारों को जब बाँध रही थी, अरमानों के साँचे ढाल रही थी, खिन्न हुई, उद्वगिन हुई जब, खुद को मैं आँक रही थी । विचारों…
वो पूर्ण शक्ति जब बिखर गया, कण-कण में सिमट गया , तब हुआ इस जग का निर्माण, वो परमपिता सृजनकर्ता जो, नित्य सूर्य बन अपनी…
उठो वीर जवानो भारत माता, तुम्हे पुकार रही, अपने लालों के लहू का, बदला माँग रही, अपने अमर जवानो के पथ पर, चलने को ललकार…
काल चक्र में घूम रही, मैं कोना-कोना छान रही, हीरा पत्थर छाँट रही मैं, तिनका-तिनका जोड़ रही, उसमें भी कुछ हेर रही, संजोऊँ क्या मैं…
किसने मानव को सिखाया, करना अभेद में भेद। एक निराकार परमात्मा, अनन्त, अविनाशी, अभेद, हम मानव झगड़ रहे , कर उसके भेद। एक हीं…
चिर आनन्द की अभिलाषा में, चंचल मन व्याकुल रहता है, अंधियारे-उजियारे में, कुन्ज गली के बाड़े में, देवालय में,जीव-निर्जिव सारे में, ढूँढ़़-ढूँढ़ थक हारी मैं,…
जाने किस कश्मकश में, जिंदगी गुजरती जा रही है, न जाने मैं अपना न पाई या, जिंदगी मुझे आजमाती रही, बहुत हीं कच्ची डोर में,…
मदहोशी में जीवन कारवाँ, चला जा रहा है, लड़खड़ाते कदम,ठिठक जाते कदम, दिशाहीन मन,बिना पंख, उड़े जा रहे हैं, ख्वाबो के अधीन हम, हैरान हैं,…
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/08/12 जीने की लय में, अभी सरगम बाकी है, बारिशो के बाद, इन्द्रधनुषी छटा आती है, चकाचौंध रोशनी न सही, अभी झरोखों से किरण आती…
जीवन चक्र के बनते बिखरते क्रम में, कितने पल हम मिल-बाँट जीए, कुछ छिछले बर्तन सम, द्रवित पल न थाम सके, कितने मोती सम पल,…
भ्रांति की अविरल धारा बहने दो, जिजीविषा काया की रहने दो, खंडित जीवन की अभिलाषा, जो कुछ शेष है सहने. दो, हाँ, रहने दो,कुंठित मन…
बिन मौसम बरसात हो, जब बिन मेघ वज्रपात, होता है तब मन में , पत्र विहिन वृक्ष के , दुुखो. का एहसास । जब निर्विकार…
कच्ची मिट्टी के हम पुतले, तपे गर जीवन भट्टी में, तो जगतहार बने, जैसे सोना तप भट्टी में , अलंकार. बने , कच्ची मिट्टी के…
उठो पथिक तुम्हे है दूर जाना, नदिया, सागर, पर्वत के पार जाना, ऊँची-नीची डगर से मत घबराना । कितने ही चट्टान हो पथ में, लहरो…
बिन मौसम बरसात हो, जब बिन मेघ वज्रपात, होता है तब मन में , पत्र विहिन वृक्ष के , दुुखो. का एहसास । जब निर्विकार…
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/07/04 वो अनछुए पल, जिनको मैंने जिया नहीं, उन्मुक्त जीवन की छटा थी, या कि नव सृजन. की कपोल. कल्पित परिकल्पना । जो…
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/06/28 जो तुम मेरे होते , निरिह विरह में व्याकुल मन से, मेरे चित की सुन्दरता जान लेते, मन्त्र-मुग्ध मन में मेरे , अपनी धुन…
दृग कोमल ढूँढ़ रहे, अश्को की शबनमी लड़ी, भावनाओं में जो बसती, सुख -दुख में बूँद-बूँद बरसती। सागर में जा मिली या, कि सीप में…
मलय पवन बन, आ जाओ मन उपवन में, सजल नयन है,झील कमल है, लोक-परलोक का कौतूहल, है निज चितवन में । प्रखर सूर्य बन ,…
प्रेम पीपासा तृ्प्ती की आस, भटक रहा जीव अनायास, प्रेम व्याप्त है अपने अन्दर, ढूँढ रहा घट-घट के अन्दर, प्रेम ऐसा अनमोल खज़ाना, देने से…
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