ममता

एक युवती जब माँ बनती है, ममता के धागों से बच्चे का भविष्य बुनती है, ज़ज्बात रंग -बिरंगे उसके, बच्चे के रंग में ढलते हैं,…

जीवन

सागर लहरें आग पानी जीवन की बस यही कहानी, ये जो है झीनी चादर जिंदगानी हमने- तुमने मिल बुनी है, रेशे-रेशे में घुली है तेरे-मेरे…

नव

नभ के अरुण कपोलों पर, नव आशा की मुस्कान लिए, आती उषाकाल नव जीवन की प्यास लिए, दिनकर की अरुणिम किरणों का आलिंगन कर, पुष्प…

नया साल

पल महीने दिन यूँ गुजरे, कितने सुबह और साँझ के पहरे , कितनी रातें उन्नीदीं सी, चाँदनी रात की ध्वलित किरणें, कितने सपने बिखरे-बिखरे, सिमटी-सिमटी…

स्पर्श

जीवन की पथरीली राहों पर, जब चलते-चलते थक जाऊँ, पग भटके और घबराऊँ मैं, तब करुणामयी माँ के आँचल सा स्पर्श देना, ऐ ईश मेरे…

अब

अब ममता की छांँव और आत्मीयता को छोड़, व्यवसायिक मुकाम हासिल करने में जुटी जिंदगी । अब कुदरती हवा और चाँदनी रात के नज़ारों को…

ग्रीष्म ऋतु

ग्रीष्म ऋतु की खड़ी दोपहरी, सुबह से लेकर शाम की प्रहरी, सूरज की प्रचंड किरणें, धरती को तपा रहीं हैं, फसलों को पका रहीं हैं ं,…

हँस लिया करो

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2017/04/06 कभी यूँ हीं हँस लिया करो, उदासी का दामन छोड़, खुशियों से मिल भी लिया करो, बहुत छोटी है जिन्दगी, जीने की तमन्ना बुन…

वो माटी के लाल

वो माटी के लाल हमारे, जिनके फौलादी सीने थे, अडिग  इरादो ने जिनके, आजादी के सपने बूने थे, हाहाकार करती मानवता, जूल्मो-सितम से आतंकित थी…

आओ तन मन रंग लें

चली बसंती हवाएँ , अल्हड़ फागुन संग, गुनगुनी धूप होने लगी अब गर्म, टेसू ,पलाश फूले, आम्र मंज्जरीयों से बाग हुए सजीले, तितली भौंरे कर…

ढ़ूँढ रही मैं

ढ़ूँढ रही मैं बावरी, अपने हिस्से का, स्वर्णिम आकाश, टिम-टिम करते तारे, हाय! सुख-दुख के, बन गए पर्याय , तम घनेरा ऐसे , छाय जैसे…

आँसू

इस हृदय क्षितिज के, शून्य तल पर काली घटाएं, हैं जब-जब छातीं , हृदय पटल को विदीर्ण कर, वेदना ऐसे अकुलाती, जैसे काली घटाओं बीच,…

माँ हूँ मैं

ममता की छाँव तले , समता का भाव लिए, इंसानियत का सभी में, संचार चाहती हूँ, माँ हूँ मैं,हाँ भारत माँ, एकता और सदभाव का,…

परिहास बनी

परिहास बनी पल दो पल के, उन्मादित पलों को, प्रेम समझ परिहास बनी, कोमल एहसासों को अपने, पाषाण में तराश  रही, क्षणभंगुर जगत में, अमरता…

अपना क्या है

जीवन में अपना क्या है, एहसासों का सपना जो है, खट्टी-मीठी यादों की जाल, और कुछ सुनहरे भविष्य की आस, मन में संजोए जीने की…

काल चक्र

काल चक्र में घूम रही, मैं कोना-कोना छान रही, हीरा पत्थर छाँट रही मैं, तिनका-तिनका जोड़ रही, उसमें भी कुछ हेर रही, संजोऊँ क्या मैं…

अभेद में भेद

किसने  मानव  को  सिखाया, करना  अभेद  में   भेद। एक  निराकार  परमात्मा, अनन्त, अविनाशी, अभेद, हम  मानव  झगड़  रहे , कर  उसके  भेद। एक  हीं…

चिर आनन्द की अभिलाषा

चिर आनन्द की अभिलाषा में, चंचल मन व्याकुल रहता है, अंधियारे-उजियारे में, कुन्ज गली के बाड़े में, देवालय में,जीव-निर्जिव सारे में, ढूँढ़़-ढूँढ़ थक हारी मैं,…

मदहोश हम

मदहोशी में जीवन कारवाँ, चला जा रहा है, लड़खड़ाते कदम,ठिठक जाते कदम, दिशाहीन मन,बिना पंख, उड़े जा रहे हैं, ख्वाबो के अधीन हम, हैरान हैं,…

अभी बाकी है

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/08/12 जीने की लय में, अभी सरगम बाकी है, बारिशो के बाद, इन्द्रधनुषी छटा आती है, चकाचौंध रोशनी न सही, अभी झरोखों से किरण आती…

हाँ रहने दो

भ्रांति की अविरल धारा बहने दो, जिजीविषा काया की रहने दो, खंडित जीवन की अभिलाषा, जो कुछ शेष है  सहने. दो, हाँ, रहने दो,कुंठित मन…

मन में

बिन मौसम बरसात  हो, जब बिन मेघ वज्रपात, होता है तब मन में , पत्र  विहिन  वृक्ष के , दुुखो. का  एहसास । जब निर्विकार…

मन में

बिन मौसम बरसात  हो, जब बिन मेघ वज्रपात, होता है तब मन में , पत्र  विहिन  वृक्ष के , दुुखो. का  एहसास । जब निर्विकार…

अनछुए पल

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/07/04 वो   अनछुए   पल, जिनको मैंने जिया नहीं, उन्मुक्त जीवन की छटा थी, या  कि  नव  सृजन. की कपोल. कल्पित परिकल्पना । जो…

जो तुम मेरे होते

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/06/28 जो तुम मेरे होते , निरिह विरह में व्याकुल मन से, मेरे  चित की सुन्दरता जान लेते, मन्त्र-मुग्ध मन में मेरे , अपनी धुन…

आ जाओ

मलय पवन बन, आ जाओ मन उपवन में, सजल नयन है,झील कमल है, लोक-परलोक का कौतूहल, है निज चितवन में । प्रखर  सूर्य  बन ,…

प्रेम पीपासा

प्रेम पीपासा तृ्प्ती की आस, भटक रहा जीव अनायास, प्रेम व्याप्त है अपने अन्दर, ढूँढ रहा घट-घट के अन्दर, प्रेम ऐसा अनमोल खज़ाना, देने से…

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