क्रांतियुवा

खल्क ये खुदगर्ज़ होती। आरही नज़र मुझे।। इंकलाब आयेगा ना अब। ये डर सताता अक्सर मुझे।। अशफ़ाक़ की,बिस्मिल की बातें। याद कब तक आएँगी।। शायद…

वन डे मातरम

स्वतंत्र हैं हम देश सबका। आते इसमें हम सारे हर जाती हर तबका।।   सोई हुई ये देशभक्ति सिर्फ दो ही दिन क्यूँ होती खड़ी। एक…

कविनिकेतन

यह कविता एक ऐसे आवास के विषय में है जो सिर्फ कवि या लेखकों के मन में निर्मित है। कवियों के उस आवास को मैंने…

छोटू

दुबले-पतले,गोरे-काले। तन पर कपड़े जैसे जाले।। दिख जाते हैं। नुक्कड़ पर,दुकानों पर। ढाबों पर,निर्माणधीर मकानों पर।। देश में इन की पूरी फौज। बिना लक्ष्य ये…

“वे”

आकाश से आती हैं जेसे ठंडी ठंडी ओस की बुंदे। नन्हे नन्हे बच्चे आते हैं आँखे मूंदे।। इन बूंदों को सँभालने वाली वो कोमल से…

माँ

आँखे तुझ पर थम गई जब तुझको बहते देखा। सोच तुझमे रम गई जब तुझको सेहते देखा ।। अपनी कलकल लहरों से तूने प्रकृति को…

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