नवदीप

शीशे का एक महल तुम्हारा, शीशे का एक महल हमारा. फिर पत्थर क्यों हाथों में आओ मिल बैठें , ना घात करें । प्रीत भरें…

एक नजारा

ट्रेन के डस्टबिन के पास मैले -कुचेले फटेहाल वस्त्रों से अपना तन ढकती, गोद में स्केलेटन सा बिलखता बच्चा थामे, डालती है अपना हाथ डस्टबिन…

नारी…..

ईश्वर की अनूठी रचना हूँ मै हाँ ! नारी हूँ मैं ……… कभी जन्मी कभी अजन्मी हूँ मैं , कभी ख़ुशी कभी मातम हूँ मैं…

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