पानी पानी की

एक ताज़ा ग़ज़ल …….. गुलफिशानी – फूलों की बारिश , बदगुमानी – शक ******************************** मैंने दुश्मन पे गुलफिशानी की … आबरू.. उसकी पानी पानी की…

” कुछ ऐसा लिखूँ “

कुछ ऐसा लिखूँ , की पढ़ने वाले को लगे … मेरा एक – एक  अल्फ़ाज , गहरा हैँ … खों जाये वो मेरे अल्फाज़ो की महफ़िल में .. लगे उसे , मानो आज वक़्त , ठहरा हैं.. यादगार हों जाये उसके लिए , मेरी हर इक सुखनवरी …. एहसास हो , जैसे….. रौनक के पहरे से…

” सुराही – ए – मोहब्त “

दिल बेचैन हुआ , तो उसके दीदार का दिया दिलासा हैं ….. जाने वाले कल चले गए , लेकिन आज भी उनके लौट आने की …. छोटी सी आशा हैं ….. अब कोई तो बने सुराही – ए – मोहब्त …. क्योंकि ये सुख़नवर बहुत , प्यासा हैं ….   पंकजोम ” प्रेम “

” वक़्त लगता हैँ यहाँ “

वक़्त लगता हैं यहाँ , इंसान को इंसान समझने में ……. वक़्त लगता हैं यहाँ , पत्थर को भगवान समझने में …… आधी उम्र बीत जाती हैँ सोचने सोचने में .. क्योंकि वक़्त लगता हैं यहाँ , जीने के अरमान समझने में …..   पंकजोम ” प्रेम “

समझों तो यहीँ मोहब्त हैं

ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं ….. इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं … साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें ….. समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं…..   पंकजोम ” प्रेम “

” चाँद का मायूस चेहरा”

कल मैंने अपनी प्रेमिका के उतर दिल में , चाहत का ज़खीरा देखा ….. अपने जिल्ले – सुभानी के इंतजार में , उस चाँद का मायूस चेहरा देखा .. स्वागत में उसने आब संग बिछा दी पलकें , मैंने हर इक आब पर नाम , मेरा देखा …  …

ग़ैरों की बस्ती में , अपना भी एक घर होता

  ग़ैरों की बस्ती में , अपना भी एक घर होता.. अपने आप चल पड़ते कदम य़ु तन्हा ना य़े सफर होता…. वक्त बिताने को आवाज देती दीवारे साथ छुटने का ना कोई…

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