ज़मीन तुम हो
मेरी हर इक ग़ज़ल की अब तक ज़मीन तुम हो ….. मेरा अलिफ़ बे पे से चे और शीन तुम हो …. जज़्बात से बना…
मेरी हर इक ग़ज़ल की अब तक ज़मीन तुम हो ….. मेरा अलिफ़ बे पे से चे और शीन तुम हो …. जज़्बात से बना…
नेट के इस ज़माने में ऐ ” प्रेम ” ख़ुद ही तुम इक किताब हो जाओ …. पंकजोम ” प्रेम “
एक ताज़ा ग़ज़ल …….. गुलफिशानी – फूलों की बारिश , बदगुमानी – शक ******************************** मैंने दुश्मन पे गुलफिशानी की … आबरू.. उसकी पानी पानी की…
मन बहलाने को कोई निशानी भेज दो नींद नहीं आती कोई कहानी भेज दो ….. संजीदा रहूँ हमेशा तेरी यादों में मेहरबान बन कोई मेहरबानी…
हर हिंदुस्तानी की इक ख़ास पहचान , ये तिरंगा …. भारत माँ की करता बेनज़ीर शान , ये तिरंगा …. सीमा पर तैनात हर जवान…
मेरी सांसो में तू महकता हैँ क़ायनात – ए – ग़ैरों में तू ही अपना लगता हैँ 1 . होंठों की ख़ामोशी समझा…
मौत करती है नए रोज़ बहाने कितने ए – अप्सरा ये देख यहाँ तेरे दीवाने कितने मुलाक़ात का इक भी पल नसीब ना हुआ…
रह – रह कर ज़ेहन में बस यही ख्याल आ रहा हैं मुझे तनिक बदलने दो , नया साल आ रहा हैं ….. बेचैन…
उन्नति को लगी रहे आप से मिलने की लगन …. इस नववर्ष , आपके यहाँ हो खुशियों का आगमन …. सिलसिलेवार रहे चेहरे पर रौनक…
थे क़रीब इक दूजे के …. लेकिन फिर भी दरम्यां हमारे , दुरी रह गयी …. इबादत करते हुए , इक भी दर ना छोड़ा…
मोहब्त का ले सहारा उन्हें पाने की सोची….. ख़ुद ही बे – सहारा हो गए ….. जिनका अक्श कभी ओझल ना हुआ , नजरों…
चलो आज बात करे गुज़रे जमाने की मैंने जरूरत समझी आप सबको बताने की ….. संग उसके मुस्कुराकर समझते थे क्या बेनज़ीर रौनक है…
अज़ीब समझ हैं अपनी …. हम अपनी क़ीमत जानने से कही ज़्यादा …. अपनी क़िस्मत जानना चाहते हैं…. पंकजोम ” प्रेम “
क़ायनात ने क्या ख़ूब साज सजाया हैं …. जिंदगी के बे- रंग रंगो ने क्या रंग दिखाया हैं…. ज़रा नज़रे उठा देख ए – फ़लक…
महफ़िल – ए – यारोँ में , थोड़ा अलग दिखा देते हैँ ….. मुझे , मेरे अल्फ़ाज …… फितरत बता देते हैं , मेरी ….…
तलब ऐसी उठी दिल से….. की उन्हीं के तलबगार हो गए…. जमाने की जुबां पर …. किस्से हमारी मुलाकातों के बार – बार हो गए….…
थोड़ा रंज में , थोड़ी ख़ुशी में , साल ये बीता …. ख़ुद की मोहब्त को हारा , लेकिन फिर भी जीता …… मुसलसल…
साँसे चल रही हैँ , बिन उसके.. आने वाला , जीने में मज़ा क्या… चाह लिया उसे , उसकी इजाज़त के बगैर ….. इसमें किया…
थोड़ा मायूस हूँ , थोड़ा तन्हा हूँ .. कोई राह – ए – ख़ुशी बता दो…. ख़ुद की ख़ामोशी देख , ख़ामोश क़ायनात भी दिख…
कफ़स दिल में कुछ जज़्बात .. आबो संग बीता जाता हूँ , ” मैँ “….. पुष्प हूँ , खिलनें के लिए बना हूँ …. …
ज़रा इक निग़ाह डाल देखों सावन पर ” पंकजोम ” प्रेम ” ” …. ख़ामोश अल्फ़ाज़ मेरे ,सबसे बतियाते बतियाते दिखेंगे ….. पंकजोम ” प्रेम “
उसने कहा बहुत अमीर हूँ ” मैं ” , दिल से…. लेकिन चाहत का इक भी टका , वो मुझ पर खर्च ना कर सकी..
अपनी पूरी कमाई तूने मय पर लूटा दी….. ए – ग़ालिब…. जरा मुझे ये बता… उस दो घूंट में , जिंदगी जीने का स्वाद…
कुछ ऐसा लिखूँ , की पढ़ने वाले को लगे … मेरा एक – एक अल्फ़ाज , गहरा हैँ … खों जाये वो मेरे अल्फाज़ो की महफ़िल में .. लगे उसे , मानो आज वक़्त , ठहरा हैं.. यादगार हों जाये उसके लिए , मेरी हर इक सुखनवरी …. एहसास हो , जैसे….. रौनक के पहरे से…
दिल बेचैन हुआ , तो उसके दीदार का दिया दिलासा हैं ….. जाने वाले कल चले गए , लेकिन आज भी उनके लौट आने की …. छोटी सी आशा हैं ….. अब कोई तो बने सुराही – ए – मोहब्त …. क्योंकि ये सुख़नवर बहुत , प्यासा हैं …. पंकजोम ” प्रेम “
वक़्त लगता हैं यहाँ , इंसान को इंसान समझने में ……. वक़्त लगता हैं यहाँ , पत्थर को भगवान समझने में …… आधी उम्र बीत जाती हैँ सोचने सोचने में .. क्योंकि वक़्त लगता हैं यहाँ , जीने के अरमान समझने में ….. पंकजोम ” प्रेम “
ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं ….. इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं … साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें ….. समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं….. पंकजोम ” प्रेम “
कल मैंने अपनी प्रेमिका के उतर दिल में , चाहत का ज़खीरा देखा ….. अपने जिल्ले – सुभानी के इंतजार में , उस चाँद का मायूस चेहरा देखा .. स्वागत में उसने आब संग बिछा दी पलकें , मैंने हर इक आब पर नाम , मेरा देखा … …
सम्भाल ले ऐ – ख़ुदा , एक लम्हे के लिए मुझे…. अब मैं हार रहा हूँ ….. तू ही बता मेरे साहिब , मैं क्यों…
Shhbdo ki mehfil thi SJJI… yaaro hum bi chl diye apni MOHHBAT k kisse ” sunaane ” …. Jo dard tha dil m bya krte…
मेरे माधव ही नहीं आप सब … राह – ए – क़ामयाबी में , मेरी तरह एक मुसाफ़िर भी हो …. भरने फ़लक – ए…
जब महफ़िल – ए – इश्क़ में , निग़ाह से निग़ाह टकराई … दिल की बात चेहरे पर उभर आई …. अँधेरे में डूबे…
देखकर उसकी मुस्कान , ख़ुशी से भर जाता हूँ , मैं ….. उसकी एक झलक पाने …. कुछ भी कर जाता हूँ , मैं….. वो…
दिल जब कश्ती – ए – मोहब्त पर सवार होता हैँ….. तब उनसे मुलाकात करने को दिल बेक़रार होता है…. दीदार कर उस अप्सरा का…
जब दर्द हुआ मेरे सीने में …. तो चुपके से दिल ने कहा ….. ए – सुख़नवर … ” आज थोड़ी तकलीफ़ हो रही हैँ , जीने में “…. पंकजोम ” प्रेम “
जैसे ही शरीक हुए , महफ़िल – ए – मय में ….. जाम पर जाम होंठो से टकराते गए….. हर एक घूंट के साथ …..…
मुझे हमेशा तुम से बाँधें रखेँ …. इस क़ायनात में , ऐसी एक जंजीर ढूंढता हूँ ….. दौलत से सब बन जाते है अमीर…
मैं लिखता हूँ मोहब्त को … मोहब्त की कलम से…. मैं भरता हूँ अपने ज़ख्मो को .. उसकी यादों की मरहम से… कुछ ही महफूज़…
बरस ना जाये फिर नैना , तू दिल मे कैद कही वो अब्र कर ले.. तो क्या हुआ , अगर कुछ ख्वाईसे पूरी ना हुई…
कल खो दिया मैंने वो नायाब रत्न … जिसे पाने को हर इंसान करता है , ना जाने कितने प्रयत्न ….. This Gajal Dedicate to…
उसकी यादों की बारिश से , एक एक पल है यूँ भीगा…… किया है जब से दीदार – ए – रुख़ – ए – रोशन…
जिंदगी एक बार दी है , ख़ुदा ने … फिर क्यों तन्हा रहते हो….. मैं हमराज़ हूँ , तेरे हर राज़ में .. फिर राज़…
ए – ख़ुदा ….. जरा तू रौनक – ए – बाज़ार देख…. हर इंसान के चेहरे पर ….. मुस्कराहट का कारवाँ सिलसिलेवार देख …..…
सुख़ , समृद्धि और ख़ुशहाली संग , माँ लक्ष्मी का पूजन हो … अपनों की , अपनों से , अपनेपन की बढ़ती चले मिठास…
मय में भी नशा है…. लेकिन उस रुख़ – ए – रोशन की ख़ूबसूरती से कम नहीं… हूँ जब आज , मुस्कुराहट के आगोश…
ग़ैरों की बस्ती में , अपना भी एक घर होता.. अपने आप चल पड़ते कदम य़ु तन्हा ना य़े सफर होता…. वक्त बिताने को आवाज देती दीवारे साथ छुटने का ना कोई…
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