आजादी
लहू है बहता सड़कों में आक्रोश है कुम्हलता गलियों में लफ़्जों मे है क्यों नफ़रत का घर आग है फैली क्यों फिजाओं में रंगो में…
लहू है बहता सड़कों में आक्रोश है कुम्हलता गलियों में लफ़्जों मे है क्यों नफ़रत का घर आग है फैली क्यों फिजाओं में रंगो में…
बनाया है खुदा ने इन्सान को दुनिया बनाने के लिए मगर देखिए क्या हो रहा है दुनिया में लगा है इन्सान खुद को बनाने में!
कागज की कश्ती जिसमें तैरता था बचपन कभी बहता था पानी की तेज धारों में बिना डरे, बिना रुके न डूबने का खोफ़ न पीछे…
सुनो, मैंने भी एक दौर देखा हैं.. पिछले कुछ समय में मैंने एक दौर देखा हैं, मैंने अन्ना का आंदोलन देखा हैं, मैंने निर्भया की…
अब कलम उठायी है तो कुछ लिख देते है वर्ना जिंदगी किसी कहानी से कम नहीं
सब हर्फ़ों का खेल है इस खलक में कुछ जख़्म देते है, कुछ मरहम लगा देते है
निकल जाते है उन रास्तों पर जिनकी कोई मंजिल नहीं अंधेरे होते है जिन राहों में मगर कोई अंजुमन नहीं होते है कांटे, कंकड़ फूलों…
दमन चक्र में घिरे हुए नर की व्यथा कौन कहे शोषित होती नारी के, आसूओं में कौन बहे दिखती है अंधी दुनिया मुझे अपने चारो…
कोई जमीन अभी भी है जहां मैं अभी तक गया नहीं हूं कोई आकाश बचा है अभी भी जहां मुझे पहुंचना है दो परतों के…
ऐसी उठा पटक न देखी कभी, न ही सुने शब्द तीखे तर्रार कभी| ये तो entertainment का जमाना है भैया जो जि सब होत रहत…
चाँद के शौक मे तुम छत पे चले मत जाना शहर में ईद की तारीख बदल जाएगी
सिमट गया चंद लफ़्जों में आजढल गये अहसास कुछ अश्कों मे आजकहने को तमाम जिंदगी का तजूर्बा है मेरे पाससुनने वाला कोई भी नही है…
जब सोचा इक दफ़ा जिन्द्गी के बारे मे किस कदर बसर हुई जिंदगी मेरी क्यों भटकता रहा जिंदगीभर मुसाफ़िर बनकर ज्वालामुखी सा जलता रहा कभी…
सिमट कर आ गये सारे अहसास आज आंखों में बरस चला सारे साल का सावन, आज रुखसारों पर
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