Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Mohit Sharma
unboundmohit
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कितनी दफ़ा उँगलियाँ अपनी जला दी तूने… ‘माँ’ मेरे लिए चंद, रोटियाँ फुलाने में ! कितनी दफ़ा रातें गवां दी, “माँ” तूने मुझे सुलाने में,…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
हम उस देश के वासी है ।।
हम भारत के वासी है, संस्कृति हमारी पहचान है । सारी जहां में फैली हुई, हमारी मान-सम्मान है । सादगी है हमारी सबसे निराली, अजब…
ऐसा क्यों है
चारो दिशाओं में छाया इतना कुहा सा क्यों है यहाँ जर्रे जर्रे में बिखरा इतना धुआँ सा क्यों है शहर के चप्पे चप्पे पर तैनात…
सूखे दरख्त रोते हैं क्यों
जहाँ सबसे पहले सूरज निकले वहाँ खौफ का मरघट क्यों जहाँ काबा -काशी एक धरा पर उस माटी में दलदल क्यों खून के आंसू रो…
nice 1
thanks ankit bhai
क्यों जानकर हमारी जान लेते है ..so beautiful
dhanyabaad
Good
वाह