Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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उठाना …. धीरे से
धीरे से उठाना सदियों से गह्न निद्रा में , है सोया यह समाज़ , धीरे से उठाना युगों का अंधकार समेटे , है सोया…
“लाडली”
मैं बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम पाती हूँ कहीं “लाडली” तो कहीं उदासी का सबब बन जाती हूँ नाज़ुक से कंधो पे होता है…
गमछे रखकर के अपने कन्धों पर….
गमछे रखकर के अपने कन्धों पर…. गमछे रखकर के अपने कन्धों पर बच्चे निकले हैं अपने धन्धों पर। हर जगह पैसे की खातिर है गिरें…
नियति का खेल
जब हम बुरे समय से गुजरते हैं अपने ईश्वर को याद करते हैं सब जल्दी ठीक हो जाये यही फरियाद करते हैं भूल कर उस…
मासुम
मासूम छोटे से नन्हे हाथो में घडा आ गया, ये बचपन समझदारी में बदल गया । हाथो में खिलौनो के जगह, कन्धो पर जिम्मेदारी आ…
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