Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
कूड़े का ढेर
जिसे कहते हो तुम कूड़े का ढेर; वह कोई कूड़ा नहीं! वह है तुम्हारी, अपनी चीजो का ‘आज’ | जिसे खरीदकर कल तुमने बसाया था…
कचरेवाली
इक कचरेवाली रोज दोपहर.. कचरे के ढेर पे आती है.. तहें टटोलती है उसकी.. जैसे गोताखोर कोई.. सागर की कोख टटोलता है.. उलटती है..पलटती है..…
*एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर*
*एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर* क्या नही तुमने किया क्या नही हमने कीया कंबरे मे रेहके बंद सबने नजाने काटे कितने पेहेर एक…
लंबी इमारतों से भी बढकर, कचरे की चोटी हो जाती है
जिंदगी की सुंदर प्लास्टिक, कचरें में बदल जाती है अगर यूज न हो ढंग से, ऐसे ही जल जाती है कभी कभी जिंदगी से बढी…
बढ़िया
धन्यवाद