अभियान नवगीत “
अभियान नवगीत ”
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बांधे सर पे मस्त पगड़िया
राह कठिन हो,चलना साथी
दुराचार ख़तम करने अब
उतार चलो काँधे की गाँती
आन ,बान और शान हमारे
अच्छे- सच्चे हैं वनवासी
दिलों – दिलों को दर्द बताने
महफिल – महफिल खड़ी उदासी
आँखें भर – भर उठती हैं
मां जब अपनी कहर सुनाती
बांधे सर पे …………….
जोते – बोये ,कोड़े -सींचे
धरती में अपना खून -पसीना
फसलें हरी भरी लहरायें
हर्षित हुआ कृषक का सीना
सभी घरों में पेट को भरते
बेटे ,पोते, नतिनी -नाती
बांधे सर पे………………
घर- आँगन का नन्हा बच्चा
नाचे ,झूमे और इठलाये
वहीं ,किसान का बेटा ,सीमा पर
हंसते – हंसते गोली खाये
संबंधों की स्मृतियों संग
आँखें खुली -खुली रह जातीं
बांधे सर पे मस्त पगड़िया
कठिन राह पे चलना साथी |
– सुखमंगल सिंह
वाह
हार्दिक अभिनंदन ,आभार आदरणीय राही अंजाना जी
सुंदर रचना
आदरणीय देवेश साखरे ‘देव ‘ जी धन्यवाद ! आपकी टिप्पड़ी मेरी रचना ” अभियान नवगीत ” को उचाई देने में सहायक सिद्ध हो ! शुक्रिया
वाह
हार्दिक स्वागत है आपका आदरणीय महेश गुप्ता जौनपुरी जी