असमंजस में पड़ा इंसान
किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।
दौलत के रिश्ते हैं,
रिश्तों की यही अहमियत है ।
वक्त के साथ अपने,
जज़्बात बदलने की सहुलियत है ।
जरूरत खत्म, रिश्ते खत्म,
कड़वी, पर यही असलियत है ।
दौलत बड़ी या रिश्ते,
किस बंधन में जकड़ा इंसान।
किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।
डूबते को बचाना छोड़ कर,
‘वीडियो’ बनाने में हम मशगूल।
तड़पते का ‘फोटो’ खींचने में,
इलाज कराना गए हम भूल।
हमदर्दी को ताक पर रख,
इंसानियत की बात करना फिजूल।
कैसी विडंबना है आज,
इंसानियत से हुआ बड़ा इंसान।
किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।
संयुक्त परिवार,
मात्र एक कल्पना है।
एकल परिवार,
आज सभी का सपना है।
व्यस्त जीवन में,
कौन किसी का अपना है।
विकट परिस्थिति में कब,
मुश्किलों से अकेले लड़ा इंसान।
किस असमंजस में पड़ा इंसान।
किस दोराहे पे खड़ा इंसान ।।
देवेश साखरे ‘देव’
nice
Thanks
गजब रचना
आभार आपका
बढ़िया
धन्यवाद
बधाई
आभार आपका
Good
Thanks