muktak

      मैं एेसे दरिया के किनारे बैढा हुं,
हर घडी जहा से समुन्दर दिखने लगता है।
ये मेरा दिल भी एक जिद्दी बुजुर्ग् जैसा है,
जो रात होते ही किस्से सुनाने लगता है।
आपका अपना कवि नवीन गौड

 

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