Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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सोचा था जो वो पुरा ना हो सका
सोचा था जो वो पुरा ना हो सका बदलते हालात को देख मैं अपना ना हो सका आंखों के आंसूओं को मैं अपने पोंछ ना…
मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर जब मैं निकली श्री शिव की…
भाग्य विधाता लोकतंत्र के
कितनी ही मेहनत करके दो जून रोटियां पाते हैं भाग्य विधाता लोकतंत्र के सड़कों पर रात बिताते हैं। अफ़सोस नहीं हो रहा उन्हें जो कद्दावर…
यकीं तुझे दिला न सका
तुझे पाकर भी मैं पा न सका। तेरे दिल में जगह बना न सका। सोचता हमारे बीच कोई ना होगा, जहां से अपना प्यार बचा…
पद चिन्ह
देख मनुज संसार में , कोई नहीं किसी का मतलब की दुनिया ये सारी कौतुक ब्रह्म विधि का मत सोच मनुज कि तू निर्बल है…
Uttam
बहुत बहुत आभार आपका
Good