गीत — तुम नहीं तो ….. !

तुम नहीं, तो…… !
: अनुपम त्रिपाठी

तुम नहीं; तो ग़म नहीं ।
ये भी क्या कुछ कम नहीं ।।
तुम जो थे, तो ये भी था और वो भी था
हर तरफ पसरी पड़ी रहती ……… व्यथा
दर्द–—की-—-नदियां कई–बहतीं–यहां
फिर भी कोरे मन में कोई संगम नहीं
तुम नहीं; तो ………

कई उदास दिन ओढ़कर, काट ली हैं तनहा रातें
साथ थे, तो चुप भली थी, गूंजती अब बिसरी यादें
सूनी पलकों पे तने हैं—-स्वप्न के वितान सारे
बुन रहीं–आंखें समन्दर, फिर भी कोरें नम नहीं
तुम नहीं; तो ……..

भूल कर भी भूलना, अब तलक सीखा नहीं
याद : मीठा–सा ज़हर है, कड़वा या तीखा नहीं
इस तरह से दिन जुदाई के, ये सारे कट रहे
लग रहा है–सफ़र खत्म पर, तुम नहीं या हम नहीं
तुम नहीं; तो ……..

कई कहानी कै़द हैं , इन बिस्तरों की सलवटों में
आह–सिसकी और समर्पण, चींखते अब करवटों में
थ….र….थ….रा….ते लब खामोशी के नहीं कुछ बोलते
आंख : पत्थर– स्वप्न : बंज़र, रूठे सुर : सरगम नहीं
तुम नहीं; तो …………..

हम मिलन की आस लेकर, दिन–पहाड़ों पर चढ़े
रातें : तारे गिन के काटीं, विरह–ज्वाला में जले
मन की वल्गा थाम कैसे, कामना के अश्व को
किया वश में, हमने ‘अनुपम’,किए क्या-क्या जतन नहीं
तुम नहीं; तो ……………
*****#anupamtripathiG*****

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