Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर जब मैं निकली श्री शिव की…
बरखा
बरखा जरा प्यार बरसा दे कब से प्यासा अंतर है तू प्यास बुझा दे बरखा जरा प्यार बरसा दे बरस बरस बरखा मेरी कितने तुमको…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
लगता है
लगता है हम बिखर चुके है, अब कोई जोश नही है,रोष नही है, हालातो का होश नही है जब सुनते है वो प्यारी बातें लगता…
“लाडली”
मैं बेटी हूँ नसीबवालो के घर जनम पाती हूँ कहीं “लाडली” तो कहीं उदासी का सबब बन जाती हूँ नाज़ुक से कंधो पे होता है…
वाह , अति सुन्दर, मनभावन, बधाई…!
Bahut Dhanyawad 🙂
वाह
Uttam
Shukriya 🙂