जड़ों को फैलाये मैं हर पल को पकड़ रहा हूँ

जड़ों को फैलाये मैं हर पल को पकड़ रहा हूँ,

देखो किस तरह मैं खुद पर ही अकड़ रहा हूँ,

आया तो था मैं कुछ दूरियाँ मिटाने की खातिर,

मगर आज मैं ही गहरे रिश्तों को जकड़ रहा हूँ।।

– राही (अंजाना)

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