कभी सूनसान गली तो कभी…
कभी सूनसान गली तो कभी खुले मैदान में पकड़ ली जाती है,
तू क्यों कटी पतंग सी हर बार लूट ली जाती है,
वो चील कौवों से नोचते कभी जकड़ लेते हैं तुझे,
तू क्यों होठों को खामोशी के धागे से सी जाती है,
जन्म नहीं सम्भव तुझ बिन तू रिश्ते कई निभाती है,
तेरी पहचान क्यों इश्तेहार में मूक- वधिर बन जाती है।।
– राही (अंजाना)
Osm
Osm
Thank you
Good
Aah