Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Panna
Panna.....Ek Khayal...Pathraya Sa!
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कुछ कही छूट गया मेरा
तुम अपना घर ठीक से ढूंढना ,कुछ वहीं छूट गया मेरा ढूंढ़ना उसे , अपने किचन में जहाँ हमने साथ चाय बनाई थी तुम चीनी…
मेरा स्वार्थ और उसका समर्पण
मैनें पूछा के फिर कब आओगे, उसने कहा मालूम नहीं एक डर हमेशा रहता है , जब वो कहता है मालूम नहीं चंद घडियॉ ही…
एक सावन ऐसा भी (कहानी)
किसी ने कहा है कि प्रेम की कोई जात नहीं होती, कोई मजहब नहीं होता ।मगर हर किसी की समझ में कहां आती है…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
गायब हर मंजर मेरा
गायब हर मंजर मेरा ढूढ़े परिंदा घर मेरा जंगल में गुम फ़स्ल मेरी नदी में गुम पत्थर मेरा दुआ मेरी गुम सर सर में भंवर…
Well said
Good