ललकार
जिंदा की ललकार का वल कहाँ?
मृत्यु का आवाहन करते हों?
आत्ममंथन कर स्वयं विचार करो?
नारी सम्मान में कितने शीष कटते है?
इतियास पन्नो पर आहाकार करते हो?
मन चंचल मे क्या क्या उमडता है,
पर कितना पटल पर उतरता है।।
व्यक्ति के प्रति क्या विचार रखते है,
मन की डोर स्वयं के हाथो में रखते है।।
क्यों वनाता भंसाली मसाला ,
यह उस सोच पर तमाचा है?
एक प्रश्न मेरा योद्धाओं से है,
इतियास के आवाहन पर उठी तलवारे?
जिंदा की ललकार का वल वनो।।
यह शोर्य जव पालोगे दिखलाओगे,
तव ही योद्धाओ कहलाओगे।।
सिर्फ राजनीति करने का खेला है,
तो समझो तुम्हारा अतन नही पतन होगा।।
हर नारी को पद्मावती नही लक्ष्मीवाई का,
आवाहन वीरागना देखना चाहते है।।
जौहर नहीं अवला नहीं मर्दाना का,
चौला चण्डी का आवाहन चाहते है।।
भेडियों के झुण्ड में शेरनी की दहाड,
तलवार की ललकार वल का प्रहार चाहते है।।
जौहर आत्मदाह नहीं भेडियो की मृत्यु,
रक्त से धरा को वतलाना चाहते है।।
दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती से निकलके,
काली चण्डी आक्रोश जगाना चाहते है।।
याद करो द्रोपती को सभा में हुई लाजवत,
आत्मदाह नहीं महाभारत विध्वंस कराया था।।
सीता जी पर दृष्ठी पढी रावण की,
रावण की लंका दहन वध करवाया था।।
याद करो और वीरागंनाओ को वीरा,
रोम रोम में लक्ष्मीवाई सा शोर्य भरना है।।
कलयुग के वार का वार आत्मदाह नही करना हैं,
जीके भेडियों का प्रतिहार करना है।।
रोम रोम में पद्मावती नही लक्ष्मीवाई सा,
जौहर नहीं वीरागंनाओ को भरना है।।
bahut uttam vichaar prastut karti he aapki kavita
धन्यवाद जी
Bahut khoob
धन्यवाद जी
After reading your poem, I got goosewomps. Nice
धन्यवाद जी
Bhut hi jada hirdye pr prhar krne bali pnktiya
Bhut khoob???????
धन्यवाद जी….
Waah
So nyc
Good