नवविवाहिता का पति को भाव–समर्पण…….

मेरे साजन तुम्हारा अभिनन्दन
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मेरा सजने को है जीवन–आँगन
मेरे साजन तुम्हारा अभिनन्दन…

भाव–विभोर मेरे नैनन में
स्वप्न ने ली अँगड़ाई है-
जो लिखी विधाता के.हाथों–
उस परम्परा की अगुवाई है
खिलने वाला है नव उपवन—-
मेरे साजन तुम्हारा अभिनन्दन

बहुपुष्प सुगंधित सा मन
अनुभूति–जैसे हरित चित्तवन
भावनाएँ थिरक रही ऋंगार कर–
प्रतिक्षामयी मेरा हर क्षण कण-कण
सरिता जैसे सिन्धु को अर्पण–
मेरे साजन तुम्हारा अभिनन्दन

कटु–मधु मिश्रित पथ जीवन
पर मेरा तुमसे इतना ही निवेदन
हों अधर पे सुवास हँसी की
जैसे–भ्रमर की गुन-गुन गुँजन
मेरी आतुरता—मेरा आलिँगन
मेरे साजन तुम्हारा अभिनन्दन

स्वीकार करके मेरा पल–पल
शुभ्भारम्भ नई शुरुआत की
कर प्रेम–सिंचन नित–नवल
मेरे एहसास की–जज़्बात की
समर्पण की मधुर स्पर्श-मिलन
मेरे साजन तम्हारा अभिनन्दन

अश्रुधार में लिपटी हुई है
यादें अबतक के क्षण की
पलकों की आँचल में सिमटी
गाथा जनक-जननी के अर्पण की

उनके चरणों में सदैव वन्दन
उनके कर्मों का ऋणी है जीवन
उनके आशीष से सुशोभित मेरा क्षण-क्षण
माँ–पापा ने सजाया मेरा जीवन–आँगन
मेरे साजन–तुम्हारा अभिनन्दन——–
मेरे साजन…….तुम्हारा अभिनन्दन..।।

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