मुक्तक

ये पूनम की रात भी बड़ी अजीब होता  है

पास इसके भी किस्से कई महफूज होता है

कुछ हसीं तो कुछ दर्द – ऐ – गम होता है

क्या करे रातो में ही दीदार-ऐ-चाँद होता है

 

“विपुल कुमार मिश्र”

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

आज़ाद हिंद

सम्पूर्ण ब्रहमण्ड भीतर विराजत  ! अनेक खंड , चंद्रमा तरेगन  !! सूर्य व अनेक उपागम् , ! किंतु मुख्य नॅव खण्डो  !!   मे पृथ्वी…

Responses

+

New Report

Close