ख्वाहिशें

कुछ ख्वाहिशें दिल में रहती है
और कुछ दिल से निकल जाती है
तेरी हर एक तस्वीर नयी याद बनाये
और पुरानी यादें बदल जाती है

थक गया हूँ मैं यह कह- कह कर
आने दे मुझे तेरी पनाहों में
मेरी गुज़ारिशो से सुबह शुरू
तेरी ‘ना’ पर शाम ढल जाती है

तकलीफ़ों से निजात दिला दे तू
बेवहज ख्वाबों में मत सताया कर
दिल-ओ-दिमाग को ठंडक मिले
नज़रों में जो तेरी शक्ल जाती है

ना सुनी पायी तू मेरा ये अनकहा
और ना अब सुनना चाहती है
पर तू जिस पल सामने आ जाये
दीवाने के दिमाग से अक्ल जाती है

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Responses

  1. ख्वाहिशों के बाजार सेे इक ख्वाब खरीदने को जी करता है
    आज फिर से इन नयी जिंदगी जीने को जी करता है

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