आधार …

दिल टूटने का लिखने से क्या सम्बन्ध है,
ठोष हृदए को विचार आने में क्या कोई प्रतिबंध है,
जीवंत हुँ तो रखता हुँ अपना मंतव्य हर कहीं,
इंसान बनने की राह पे बात करता हुँ जो है सही…

दिल लगाने पे भी अक्सर होती है बहस यहाँ,
बातें हैं बेबाक परन्तु नियत तो है सहज कहाँ,
देखती हैं ये आँखे और सुनती है किस्सा-ए-प्रज्ञा,
जरुरत नहीं इसे दिल, ना ही किसी टूट की आज्ञा…

अगले छंद में करता हुँ बयान अपने दर्दनाक लिखने का,
समझो तो तुम भी प्रत्यन करना अपने ना बिकने का…

अपने समाज की संरचना बड़ी कठोर और कुछ यूँ,
पीकर वाहन चलाना मना तो बार में पार्किंग है क्यों,
बलात्कार के मामले हर दिन मौसम के हाल के माफिक,
इसको रोकने का उपाय करो इसकी चर्चा करते हो क्यों ||

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