“सुझाव”
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ग़ज़ल
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डगमगाती सी नाव है भाई ।
भाइयों में तनाव है भाई ।।
याद कैसे रहे लगी दिल की ।
आज झूठा लगाव है भाई ।।
दिल बड़ा पाक-साफ होता था ।
अब वहाँ भेद भाव है भाई ।।
आखिरी बार पास थे कब हम ।
साथ बस मन मुटाव है भाई ।।
दिल के रिश्ते संभालने होंगे ।
जो शुरू यूँ रिसाव है भाई ।।
दरकने पर कगार आई तो ।
बीच अब क्या बचाव है भाई ।।
आदमी की वज़ूददारी ही ।
पेश करती सुझाव है भाई ।।
बात अपनी सदा मनाते हो ।
मानना भी पड़ाव है भाई ।।
शेष अवदान सब कुशल ही है ।
पूँछना क्युँ दुराव है भाई ।।
…अवदान शिवगढ़ी
१७/०६/२०१६
०९:२७ बजे, साँझ ।
शिवगढ़ जलालपुर,अमेठी ।
अत्यंत सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई