फ़र्ज़ राखी का

न था मित्र कोई सखा मेरा
जन्मा था वो बनके दोस्त मेरा।

पहली दफा मुस्कुराया वो,
मन प्रफुल्लित हुआ था मेर।
जैसे
गुड़हल के पुष्प से निकली हो एक कली
और लुटाई हो उसने सुंदरता मुझपर।

कदम धरती पर रखा था उसने
और बरसाया था अपना मोहन मुझपर।

गयी थी मई पीया के,
मन संकुचित हुआ था मेरा;
होगा कैसा वो
मन रूखा हुआ था मेरा।

नग्न आँखों ने निहारा था उसे
हेमन्त बरसा था नयनों से मेरे।
जब विदा हुई थी मैं
आंसू सुख गए थे मेरे।

था किया पूरा अपना कर्त्तव्य उसने
रखा था मान मेरी राखी का
मई ही अनभिज्ञ थी
ना चुका सकी फ़र्ज़ उसकी राखी का।

– Anshita

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close