हम क्या-क्या भूल गये
निकले हैं हम जो प्रगति पथ पर
जड़ों को अपनी भूल गये
मलमल के बिस्तरों में धँस के
धरा की शीतलता भूल गये
छूकर चलते मोबाइल के आगे
नम्बर घुमाना भूल गये
मैसेज में बधाई देते-देते
ग्रीटिंग कार्ड बनाना भूल गये
इंटरनेट से आर्डर कर-कर
राखी रोली चिट्ठी में रखना भूल गये
आनलाइन् ट्रांस्फर करते हैं
नोटों को थूक से गिनना भूल गये
शॉपिंग भी आनलाइन् हो गयी
बाजारों की चहल पहल हम भूल गये
सी डी में गाने सुन-सुन के
शामों को गुनगुनाना भूल गये
हवाई जहाज़ में चलते हैं
रेलगाड़ी की छुक-छुक भूल गये
खिड़की से हाथ निकाल के बाहर
स्टेशन की चाय मंगाना भूल गये
ए सी में घुस के सोते हैं
छत पर चारपाई डालना भूल गये
बारिश आने पर उठा के बिस्तर
दौड़ लगाना भूल गये
गाड़ियों से चलते-चलते हम
साइकिल से गिरना भूल गये
चोट लगी तो झाड़ पोंछ के
आँसू पी मुस्काना भूल गये
टी वी पे गेम्स खेल-खेल के
पतंग उड़ाना भूल गये
बाजू वाले अंकल के घर से
बॉल माँगना भूल गये
व्यस्त हो गये हैं अब इतने
त्यौहार मनाना भूल गये
दीवाली पे बैठ साथ में
खील बताशे खाना भूल गये
होली की टोलियाँ हैं भूले
यारों के घर हुड़दंग मचाना भूल गये
पानी के गुब्बारों से सब पर
छुप के निशाने लगाना भूल गये
आ गये हैं इतने आगे अब
कि पीछे मुड़ के हाथ हिलाना भूल गये
खड़ी रह गयीं यादें कुछ
उनको संग लाना भूल गये ।।
‘ पारुल ‘
bhooli bisari cheejo ko yaad dilane ke liye shukriya
Thanks a lot
उम्दा
Thank u
अप्रतिम
Thanks a lot
अति सुन्दर 🙂