“हद” #2Liner-34

ღღ__ना जाने कैसे तुझको, “बे-हद” चाह बैठा “साहब”;
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ये दिल जो अक्सर मुझको, मेरी “हद” बताता था !!………‪#‎अक्स‬

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

क्या बताता

 कविता—क्या बताता तब आधी रात होने की कगार पर खड़ी थी लेकिन वो थी कि अपने सवाल पर अडी थी पूंछती थी कितनी मोहब्बत मुझसे…

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