सोचता हूं अभी पाजेब बजी है उसकी………..
सोचता हूं अभी पाजेब बजी है उसकी………..
दूर अपने से उसे होने नहीं देता हूं
मैं ख्यालों में उसके साथ-साथ रहता हूं।
मैने दीवार पे टांगें हुए हैं फ्रेम कई
उसको मैं सोच के तस्वीर लगा लेता हूं।
खोल देता हूं कई बार खिड़कियां सारी
किसी झोंके में हवा के उसे पा लेता हूं।
कमरे में आती हुई धूप की चुटकी लेकर
उसकी तस्वीर पे बिंदिया सी सजा देता हूं।
सोचता हूं अभी पाजेब बजी है उसकी
फिर कई चाबियां जमीं पे गिरा देता हूं।
तार पर उड़ता हुआ उसका ही आंचल होगा
मैं सभी भीगी सी यादों को सूखा देता हूं।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~–सतीश कसेरा
Man Bhavan Kalpana!
Thanks Amit Sharma
Good
क्या बात कही है वाह