Categories: शेर-ओ-शायरी
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
अपहरण
” अपहरण “हाथों में तख्ती, गाड़ी पर लाउडस्पीकर, हट्टे -कट्टे, मोटे -पतले, नर- नारी, नौजवानों- बूढ़े लोगों की भीड़, कुछ पैदल और कुछ दो पहिया वाहन…
मौकापरस्त मोहरे
वह तो रोज़ की तरह ही नींद से जागा था, लेकिन देखा कि उसके द्वारा रात में बिछाये गए शतरंज के सारे मोहरे सवेरे उजाला…
चौदहवीं का चाँद
मेरे महबूब के हुस्न की जो बात है। चौदहवीं के चांद तेरी क्या बिसात है।। चांद भी देख गश खाएगा, मेरे महबूब को देख शर्माएगा।…
ज़िन्दगी जैसे शतरंज की बिसात हो गई
ज़िन्दगी जैसे शतरंज की बिसात हो गई, जिसने समझ ली उसकी जीत ना समझा जो उसकी मात हो गई, ज़िन्दगी जैसे…… बंट गए हैं चौंसठ…
Waah
Thank you