सुवह
सुवह सुवह
ये गुनगुनी सी ,
धूप रूप की ,
लगी है
सेंकने ये ,
शीत -थरथराए तन ।
उमग
जगाने लगी ,
मन में तपन प्यार की ,
कि रूप का अलाव
तापे , थरथराया ,
तन और मन ।
जानकी प्रसाद विवश
मेरे अपने मित्रो ,
मधुर महकते सवेरे की…हर पल
तन मन सरसाती ,हार्दिक मंगलकामनाएँ,
सपरिवारसहर्ष स्वीकार करें ……।
आपका ही ,
जानकी प्रसाद विवश
Nice