वो गए है छोड़ के हर बार की तरह
वो गए है छोड़ के हर बार की तरह,
हम क्यों हैरान हो बेकार की तरह,
ये कौनसी पहली दफा है मोहब्बत में,
ये सब चलता रहता है सरकार की तरह,
पता है वो वापिस लौट के आएंगे मिलने,
हमने भी ठान लिया है इंतेज़ार की तरह,
वो दिन सुहाने,राते प्यारी,कब तक,
याद भी आते है तो तलवार की तरह,
उम्मीद आज तक नही छोड़ी है हमने,
सजा के रखा है घर, दरबार की तरह.
~हार्दिक भट्ट
bahut pyaari poem
Waah
Nice
Very good