रस्म
जो भी रस्म थी हर रस्म निभाता रहा हूँ मैं,
तेरे माथे से हर शिकन मिटाता रहा हूँ मैं।
खुद को समन्दर किया तेरी ख़ातिर,
तेरी प्यास बुझाता और खुद को सुखाता रहा हूँ मैं,
तू मुझसे नज़रें चुराता रहा, और एक टक तुझसे आँखें मिलाता रहा हूँ मैं,
तू भुला कर प्यार की राह चलने लगा,
और उजालों भरी राहों पर भी, तेरे प्यार के दीपक जलाता रहा हूँ मैं,
तू उठ गया छोड़ कर मुझे सोता हुआ जो कहीं,
दिन रात खुद को ही जगाता रहा हूँ मैं।
: राही
nice
Thanks
बहुत खूब… खूबसूरत अल्फ़ाज़ और खूबसूरत ज़जबात का मेल है ये … .. I like it Shakun
thanks a lot sir
Sir meri kvita स्वच्छ भारत पर कमेंट करें
Good
Good