Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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भोजपूरी गीत – लुका जाला केहु |
भोजपूरी गीत – लुका जाला केहु | कोरोना से जेतना जब डरा जाला केहु | बच जाला जब घरवा लुका जाला केहु | एकरा ज़ोर…
मैं बस्तर हूँ
दुनियाँ का कोई कानून चलता नहीं। रौशनी का दिया कोई जलता नहीं। कोशिशें अमन की दफन हो गयी हर मुद्दे पे बंदूक चलन हो गयी॥…
हिमालय के उतुंग शिखर से
हिमालय के उतुंग शिखर से सिंह ने भरी ऊँची दहाड़ है तूफान क्या टकराएगा उससे जो स्वयं फौलादी पहाड़ है सारे जहाँ में अब भगवा…
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला
ये माटी के खातिर होगे, वीर नारायण बलिदानी जी। ये माटी के खातिर मिट गे , गुर बालक दास ज्ञानी जी॥ आज उही माटी ह…
एक सावन ऐसा भी (कहानी)
किसी ने कहा है कि प्रेम की कोई जात नहीं होती, कोई मजहब नहीं होता ।मगर हर किसी की समझ में कहां आती है…
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