मेरी चिरइया

मेरी चिरइया
मेरी चिरईया कुंदति फांदती , कब बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं चला
ठुमक ठुमक के चलने वाली कब पैरों पर चलने लगी
कभी मचलती इन्ना ,कभी किलकारियों के साथ उसका वो हसना
लेती जब गोद में उसको उठा कैसे मेरे बालों को लेती पकड़ अपनी नन्ही उँगलियों में वो
माथे पर मेरे चम चम करती बिंदिया को कब छुड़ा मुहं में दाल लेती वो और मुस्कुराने लगती
जैसे कोई बड़ी फ़तेह कर ली हो
मेरे दुप्पटे को अपने सर पर ढक लेना और उसके अंदर ताली बजाकर हसना आज भी याद हैं मुझे
बड़ी हुई विद्यालय गई चतुर वो इतनी हर गुण को वो अपनाने लगी
उफ्फ्फ अभी देखो मेरी बांनयी फ्रॉक को पहने कैसे हैं इतराई खुद पर वो
आती जब थक हार कर बोले मुहं बनके जल्दी स दे दो कहाँ जोभी बनया हो तुमने
देखे दाल रोटी मुहं चिढाय वो इतना
कुछ अच्छा सा और बना दो मेरी प्यारी माँ
कुछ मीठा सा कुछ तीखा सा कुछ नमकीन सा
कुछ अपने प्यार जैसा माँ
भर जाये पेट मेरा जिसे खाकर
जैसे तुम्हारा प्यार पाकर हो गई में बड़ी अभी
तुम्हारे प्यार की लालशा रहेगी जीवन भर मेरी मइया
ऐसा बोले हैं वो नैना मटकाऐ के मेरी चिरईया कब बड़ी हुई मुझे पता नहीं
गौरी गुप्ता १७ /५/२०१६

 

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