मुक्तक-मनहरण घनाक्षरी
आज का विषय-मनहरण घनाक्षरी/कवित्त
दिनांक-२०/६/१६
विधा- गीत (गौना/भला) वार्णिक छंद
मात्राएँ-८ ८ ८ ७ – १६-१५
धरती पर वृक्ष नित्य अल्प होते जा रहे
पर्यावरण का कौन रखता खयाल है !
वन काटने का जुगत करने तैयार देख
बीच ही बाजार आज घूमता दलाल है !!
भय से दूर लोग है भुजंग दंग हो रहे
मानव बना जो श्रेष्ठ धरती का व्याल है !
विषिधर विकल्प मनुज दनुज समान पर
मानव के दंश का न कोई मिशाल है !!
दूई मास में खतम शर्द व बरसात ऋतु
गर्मी के मौसम बने रहत सालो साल है !
कहे मतिहीन कौन कौन दे उदाहरण
रोती सिसकती धरा हालत बेहाल है ||
उपाध्याय…
behtareen manoj ji