मनहरण घनाक्षरी

मनहरण घनाक्षरी

रण में लड़े जो सदा, शत्रुओं से डरे बिना
वीरों में भी वीर ऐसे राणा अति वीर थे ।
धर्म देश जाति नीति, का सदैव मान रखे
त्याग तप ज्ञान बुद्धि, की बड़ी नज़ीर थे ।
शत्रु हेतु रूद्र रूप, काल से कराल अति,
सुजन प्रजानु हेतु, मलय समीर थे ।
आन बान शान हेतु, राष्ट्र स्वाभिमान हेतु
सूर्य से भी तेजवान, राणा सूरवीर रणधीर थे ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close