Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
अर्थ जगत का सार नही, प्रेम जगत का सार है ।
अर्थ जगत का सार नही, प्रेम जगत का सार है । प्रेम से ही टिकी हुई, धरती, गगन, भुवन है ।। अर्थ जगत का सार…
कर्म भूमी
कर्म भूमी है हमारी मर्म भूमी है हमारी बार बार प्रभु आते जहाँ पे देव भूमी है ये हमारी मातृ भूमी है हमारी भारत माँ…
अर्जुन की राह
अर्जुन की राह मन मेरा शंकित हो कहता , अर्जुन मैं भी हो जाता , गर सारथी मेरा कृष्ण हो पाता , जीवन मेरा…
हे युवा! तुम भ्रमित ना होना।
पथ पर चलना, विचलित न होना हे युवा! तुम भ्रमित न होना उषाकाल के संवाहक तुम सफल राष्ट्र के निर्वाहक तुम क्षणिक विघ्न से द्रवित…
धन्यवाद आपका