“भीगी रातें”

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भीगी रातें
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सावन को जरा खुल के इस बार बरसने दो ।
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।

दो तीन बरस बीते कुछ प्यार भरी बातें,
अक्सर ही सताती हैं कटती ही नहीं रातें ।
मौसम बदला बदले हालात बदलने दो,
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।

पाए तन्हाई में आसार खयालों के,
ऐसे भीगी रातें किस तरह बिता लोगे ।
छेंड़ेंगे तुम्हे भी तो पुरजोर तड़पने को,
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।

इक बार जरा फिर से आँचल लहराने दो,
कुछ देर जवाँ तन से पुरवा टकराने दो ।
बेचैन हुईं कलियाँ आलम में महकने को,
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।

…अवदान शिवगढ़ी
१४/०७/२०१६
०९:३६ बजे, रात्रि ।
नवगिरवा,अमेठी ।

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