भाई
बहुत थी मैं उसदिन रोई,
अजीब पीङा में जब,माँ गयी
पर देखो तो, माँ आई, माँ आई,
साथ में अपने,भाई को भी लाई ।
थकी हुई सी माँ ,साथ नन्हा सा खिलौना
माँ लेटी तो साथ बिछ गया,उसका भी बिछौना,
नहीं पसंद था, अपने साम्राज्य में ये अनजाना अधिकार,
कहीं हुआ था कोमल मन पे हल्का सा प्रहार ।
फिर धीरे-धीरे खींचने लगा उसकी ओर मेरा मन,
हर बात अद्भुत लगी, उसकी हंसी,उसका रुदन,
कुछ ऐसे ही , खेल खेल में बीतने लगा यूँ बचपन
बाँध रहा था हम दोनों को ,प्रेम-प्यार के रिश्ते का बंधन ।
माँ के नाभ के. बंधन को छोड़ आये हैं ,
राखी के धागे से एक दूसरे की नियति जोड़ आये हैं;
कभी वो प्रहरी , तो मै बनी पहरेदार
कभी मैंने उसको थामा ,उठाये उसने मेरे नाज़-नखरों के भार ।
एक दूसरे के पूरक , एक दूसरे की ढाल,
माँ-पापा की ज़िन्दगी के मौसिकी और ताल ,
किस्मत से मिलता है ऐसे भाई बहन का साथ,
तुम्हे थामने को रहेंगे सदा तत्पर ये हाथ ।
मायके का अंश हो तुम ,
मेरे लिए मेरा वंश हो तुम,
दोनों मिल उन संस्कारों को आगे बढ़ाएंगे ,
राखी का ये पवित्र वादा हमेशा यूँ ही निभायेंगे ।।
-मधुमिता
Bahut badiya madhumita ji 🙂
जी शुक्रिया